Saturday, 20 February 2021

आत्महत्या : समस्या का अंत या शुरुआत

आत्महत्या : समस्या का अंत या शुरुआत

 नमस्कार दोस्तों 

आज हम एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करेंगे यह विषय है 'आत्महत्या'। पहले हम आत्महत्या को समझें फिर उस पर चर्चा करेंगे, और चर्चा क्यों हो, चर्चा इसलिए हो क्योंकि उसके आंकड़े चिंता का विषय है। चलिए कुछ आंकड़ों पर बात करते हैं भारत में 2 लाख से ज्यादा आत्महत्या प्रतिवर्ष होती है। विश्व में करीब 8 लाख लोग प्रतिवर्ष आत्महत्या कर लेते है। भारत की इसमें हिस्सेदारी 17% है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले आंकड़ों के अनुसार 380 आत्महत्या रोज़ाना भारत देश में होती हैं यह आंकड़े चिंता का विषय है । नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो से मिले आंकड़े आत्महत्या के विभिन्न तरीकों, शहरी और ग्रामीण परिस्थितियों और विभिन्न कारणों पर भी वर्गीकरण प्रस्तुत करता है। 


जैसा कि आपने देखा 380 आत्महत्या अगर प्रतिदिन किसी देश में होती हैं तो यह अवश्य ही चिंता का विषय है। क्यों एक व्यक्ति अपने जीवन को स्वयं समाप्त कर लेता है? क्या स्वयं के जीवन की समाप्ति एक अपराध है? क्या कोई और भी उपाय हैं आत्महत्या के प्रयासों को रोकने में? इन सभी विषय पर चर्चा होगी और सबसे अधिक हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि वह तमाम परिस्थितियां जिसकी वजह से एक व्यक्ति अपने आप को आत्महत्या जैसे कृत्य के लिए तैयार कर लेता है।


आपने अपने आसपास समाज में कई ऐसे प्रकरणों खबरों को सुना होगा जिसमें विभिन्न माध्यमों से व्यक्ति ने अपने जीवन को समाप्त कर लिया हो। जब तक यह खबर रहती हैं तब तक आपने शायद उतना ध्यान ना दिया हो मगर जब यह खबर औरों के लिए बने और आपके लिए हादसा बन जाए तो अवश्य ही आपको अंदर तक झकझोर के रख देती हैं। सही भी है मानव अपने आस पास का कितना ध्यान रख सकता है। चलिये सर्वप्रथम इस घटना के तात्पर्य को समझते हैं। आत्महत्या से तात्पर्य आत्म अर्थात स्वयं की हत्या, आत्म स्वाहा, जीवन का परित्याग। आत्महत्या क्षणिक दुख, क्रोध अति भावात्मकता की स्थिति में भी संभव है एवं सोचे समझे नियोजित रुप से भी संभव है। जैसे की जीवन समाप्ति हेतु उचित संसाधन का चुनाव जो आसानी से उपलब्ध हो तथा उसमें दर्द की अनुभूति का स्तर कम हो। 


चलिए अब चर्चा करते हैं आत्महत्या के विचारों की उत्पत्ति:- इस लेख का सबसे आवश्यक अति महत्वपूर्ण बिंदु है कि कैसे आत्महत्या के विचारों की उत्पत्ति होती हैं? आत्महत्या के विचार किसी भी रूप में व्यक्ति में क्षणिक क्रोध, अतिउन्माद, अवसाद, हीन भाव ग्रस्तता, आशाहीन, अकेलेपन की अवस्था तथा अति भावात्मकता की स्थिति में पैदा होती है। परंतु इसे यदि ठीक से समझ सके तो संभावित स्व प्रेरित आत्महत्या उपायों की तरफ होने वाले किसी व्यक्ति के झुकाव को समझा जा सकता है। साथ ही इसके माध्यम से ऐसे विचारों को अवरोधित भी किया जा सकता है आत्महत्या के विचारों की उत्पत्ति के कुछ प्रमुख बिंदु पर चर्चा आगे की जा रही है- 


  1. परिस्थिति पर नियंत्रण का भाव:-  

सामान्यतः व्यक्ति अपनी वैचारिक क्षमता अनुरूप ही परिस्थितियों पर अपना नियंत्रण चाहता है इनमें कुछ परिस्थितियों के लिए वह स्वयं को जिम्मेदार मानता है तो कुछ को वह अनायास ही उत्पन्न परिस्थिति मानता है ऐसे में व्यक्ति स्वयं को दोष मुक्त करने का प्रयास करते हैं। कई मानसिक युक्तियों (defence machenism) का प्रयोग भी करते हैं एवं अत्यधिक नियंत्रित परिवेश का निर्माण करने की कोशिश करते हैं, ऐसी परिस्थिति में जब संपूर्ण पारिस्थितिकी ही अनियंत्रित होती है तो मानसिक रूप से व्यक्ति में ऐसे विचारों की उत्पत्ति होती हैं जो स्वयं को हानि पहुंचाने तक को तैयार कर देते है। 


  1. पारिवारिक परिवेश एवं विकासात्मक अधिगम:- 

आत्महत्या के विचारों की उत्पत्ति के पीछे बाल्यावस्था किशोरावस्था में बच्चों की विकासात्मक अधिगम एवं उनके पारिवारिक परिवेश की प्रमुख भूमिका होती है। सामाजिक मनोवैज्ञानिको द्वारा किये गए विभिन्न शोधों द्वारा यह स्पष्ट किया है कि वह बच्चे जो अत्यधिक दबाव अथवा विरोधाभासी वातावरण में पलते हैं अथवा अत्यधिक नियंत्रण में रखे जाते हैं उनमें भावनात्मक विकास विकृत हो जाता है यथा विध्वंसक प्रवृत्ति के बनते हैं, उनमें तनाव के प्रति प्रत्युत्तर क्षमता कम होती हैं, जल्दी ही आवेश में आकर स्वयं अथवा दूसरों को हानि पहुंचाने का प्रयास कर बैठते हैं। चाहे ऐसे बच्चे सफल हों अथवा असफल हो परंतु भावनात्मक अस्थिरता उनको ऐसे कदम बढ़ाने को विवश कर देती है । हालांकि जीवन में सफलता और असफलता की परिभाषा हर व्यक्ति की अपनी अलग अलग होती हैं, परंतु फिर भी शरीर की हत्या हत्या तो है ही।


  1. अपेक्षा का अंधकार:-

व्यक्ति कई बार अपनी अपेक्षाओं को इतना विस्तृत कर लेता है जो कई बार उसकी अपनी निर्धारित क्षमता से भी आगे चली जाती हैं ऐसे में वह स्वयं का आकलन असफल के रूप में करता है, वह विचार और आचरण के सूत्र को समझ नहीं पाता है और स्वयं को हीनता से ग्रसित कर लेता है इनसे उसमें जीवन को जल्दी समाप्त कर नई शुरुआत करने जैसी भावनाओं का विकास होता है। ये विचार चाहे गलत ही क्यों ना हो परंतु अपने स्वयं के विचार स्वयं की परिस्थिति के प्रति ज्यादा दुखद बनते है। यदि दूसरे की परिस्थिति हो तो अवश्य ही हम स्वयं इस कृत्य को गलत मान लेते है। अपेक्षा स्वयं से को गई हो तो उसकी प्रतिपूर्ति पर विचार किया जा सकता है अन्य लोगों या वस्तुओं से अपेक्षा नियंत्रण की चेष्ठा मात्र है। जो मानसिक असंतुलन का मार्ग प्रशस्त करता है। आर्थिक कारक भी मनोवैज्ञानिक दबाव के लिए उत्तरदाई है जो आत्महत्या के प्रमुख कारणों में शामिल है।


  1. मनोवैज्ञानिक परिवेश:- 

से तात्पर्य मानसिक वातावरण से है। ऊर्जाहीन, अर्थहीन, विचलित और विघटित विचारधारा, अत्यधिक समय तक अकेलेपन अलगाव की भावना, सामाजिक संबल की कमी पारिवारिक दोषारोपण मानक व्यवहार से विचलन, कलंक, रिश्तो में अलगाव एवं मनमुटाव, चिंता, तनाव, दबाव इत्यादि कई ऐसे मनोवैज्ञानिक कारण है जो व्यक्ति को एवं उसकी मानसिक क्षमता को विकृत कर देता है और व्यक्ति समस्या का समाधान युक्तियों पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पाता है। अंततोगत्वा या तो वह स्वयं अस्थिर मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जीता है अथवा अपने जीवन को समाप्त करने के उपायों पर बढ़ जाता है।


  1. Prime life syndrome:-

आज के युग में मीडिया में प्रसिद्धि का प्रचलन काफी है। हर कोई व्यक्ति प्रसिद्धि प्राप्त करने की लालसा रखता है। वह हर प्रकार के मीडिया में सुर्खियां बटोरना चाहता है वह चाहे सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा लाइक पाने की होड़ हो या ज्यादा से ज्यादा फॉलोअर्स बढ़ाने की होड़ हो। लोगों में सेलेब लाइफ जीने की इच्छा अत्यधिक बढ़ जाना एवं सांस्कृतिक परिवेश में अचानक विघटन देखने को मिलना आदि भी आत्महत्या को बढ़ाने वाले कारक है। 

जैसे कि शालीनता सादगी जैसे शब्दों पर सेक्सी किंग किंगडम जैसे शब्दों का प्रभावी हो जाना, फ्रेंड से ज्यादा जरूरी गर्लफ्रेंड या बॉयफ्रेंड का होना, फेयर से ज्यादा जरूरी अफेयर का न्यूज़ बनना,  पीस (शांति) से ज्यादा जरूरी प्रॉपर्टी होना,  हैप्पीनेस से ज्यादा जरूरी कंफर्ट होना, रेस्पेक्ट से ज्यादा जरूरी ईगो होना, त्याग से ज्यादा जरूरी मात्र पाने की इच्छा होना, सिनेमा में दिखाए गए विध्वंस को बहुत सरल समझ कर स्वयं में वह इच्छाएं पैदा कर लेना ऐसे कई विघटन 'प्राइम लाइफ सिंड्रोम' से जुड़े हुए हैं जो आपको कहीं ना कहीं नशे, घबराहट और उससे होने वाले नुकसान की तरफ ले जाता है धीरे-धीरे व्यक्ति जलन महसूस करने लगता है खोखला जीवन जीते हुए परिवार से दूर हो जाता है अकेला हो जाता है और एक ऐसी परिस्थिति में आ जाता है जहां कोई उसे समझने वाला ना मिले, समझाने वाला ना मिले, तो कदम आत्महत्या की ओर बढ़ा लेते है। 



आत्महत्या विचार-प्रयास-अंत:-

अब हम यह चर्चा करेंगे कि आत्महत्या का विचार उसका प्रयास एवं उस प्रयास के पश्चात अंत अथवा एक नई शुरुआत। हम तकनीकी रूप से यह समझ चुके हैं कि आत्महत्या जैसे विचारों की उत्पत्ति किस प्रकार हो जाती हैं। अब बात प्रयास की जहां व्यक्ति अपने जीवन का अंत करने की क्रिया करता है परंतु वह असफल हो जाता है और कानून की नजर में अपराधी या मानसिक पीड़ित बन जाता है। आत्महत्या के प्रयास भावावेश में भी संभव है साथ ही पूर्ण नियोजित रूप में भी संभव है। आत्महत्या कर चुके लोगों के परिवारों से किए गए साक्षात्कारओ तथा पुलिस बयानों से कुछ संभावित जोखिम व्यवहारों को समझते हैं- 

  • व्यक्ति द्वारा अति आवेशित अवस्था अथवा आवेश में बोलना कि यह है इस कारण में जिंदा हूं वरना कबका मैं मर जाता (जिम्मेदारी वहन संबंधी असफलता महसूस करना)

  • एक दिन आपको पता चलेगा मेरी कीमत (महत्वपूर्ण बनने की अपेक्षा, ध्यान प्राप्त करने की इच्छा)

  • मैं इस बीमारी, कलंक या श्राप से मुक्त होना चाहता हूं।

  • मैं फला मुकाम हासिल करने के लायक नहीं हूं। स्वयं को असफल मान लेना । 

  • कुछ स्वभाव में आए परिवर्तनों से भी जोखिम व्यवहारों का आकलन किया जा सकता है जैसे अचानक स्वभाव में उतार चढ़ाव, बहुत कम बात करना, उदास रहना, नजदीकी व्यक्ति की मृत्य, बात बात पर रोना, दोस्तों परिवार जनों से दूरी, अकेले रहना, ऊर्जा की कमी महसूस करना लेकिन नींद का फिर भी ना आना, सदमा अत्यधिक तनाव, चिंता, स्वयं को अक्सर असफल बताना आशाहीन हो जाना, ईश्वर से अत्यधिक नाराज रहना।

  • कुछ विशिष्ट घटनाओं के घटित होने पर स्वयं को पृथक कर लेना, अकेलापन, हीनता के विचारों को आने देना, स्वयं का आकलन असफल व्यक्ति के रूप में कर लेना, रिश्तो में असहनशीलता व असहिष्णुता, चिंता, तनाव, दबाव आदि से मुक्ति पाने की सोच का निर्माण होना एवं दूसरे व्यक्तियों को अपने ना होने के बाद की कमी का एहसास करवाने जैसे विचारों से व्यक्ति आत्महत्या की तरफ बढ़ता है। 


उक्त ऐसे कारण अथवा आत्महत्या के जोखिम पूर्ण विचार है जिनका हमे ध्यान रखना चाहिए। मात्र आपकी सजगता आपकी परवाह और एक दूसरे को वक्त देने से भी कई बार समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। 


क्या आत्महत्या समस्या का अंत है :- 

  • आत्महत्या समस्या का अंत है अथवा समस्या की शुरुआत इसका आकलन करने के लिए अवश्य ही वह व्यक्ति जिसने यह कृत्य किया है उपलब्ध नहीं रहता और तमाम तरह की अपनी-अपनी युक्तियां समाज और सामाजिक व्यक्तियों द्वारा पुलिस द्वारा परिवार द्वारा सृजित कर ली जाती है। इन तमाम युक्तियों से कोई निष्कर्ष निकले अथवा ना निकले परंतु उस व्यक्ति का जीवन तो समाप्त हो ही जाता है। हां परिवार के लिए अवश्य ही नई चुनौतियां उत्पन्न हो जाती है। कई ऐसे सवाल उत्पन्न हो जाते हैं जिनके जवाब उस व्यक्ति के अलावा और किसी के पास न थे। परिवार जन इसी पशोपेश में रह जाता है की क्या हुआ था और वह दर्द आपस में किसी से बांट नहीं पाते हैं शायद उनको भी दर्द उतना ही हो रहा होगा लेकिन वह भी ऐसा ही कदम नहीं उठा पाते हैं क्योंकि इस कदम का एकमात्र परिणाम जीवन का अंत है समस्या के अंत की कोई गारंटी नहीं है। अतः मेरी नजर में आत्महत्या जीवन का अंत अवश्य हो सकता है मगर समस्याओं की तो नई शुरुआत ही हैं। 


आत्महत्या एक विकृत विचार:-

  • मानसिक रूप से किसी समस्या को अतींद्रिय अनुभूति के रूप में देखने से नकारात्मक निष्कर्ष प्राप्त होते है। परिस्थिति का विकृत विश्लेषण तथा मात्र नकारात्मक बिंदुओं की अनुभूति कर सकारात्मक उपायों से मुंह मोड़ लेने से, स्वयं को अपेक्षित स्थान पर ना पाने पर, एक 'विकृत विश्लेषण' आपको कोई उपाय शेष नहीं बचा है यह बता देता है। और भावात्मक अस्थिरता में सजा दे दी जाती हैं स्वयं को भी एवं परिवार को भी।


आत्महत्या विचारों से बचाव के उपाय:- 

  • बाल्यकाल तथा किशोरावस्था के दौरान उचित परिवर्तन में अभिभावकों की उपस्थिति, सहयोग तथा भूमिका, 

  • अभिभावकों द्वारा बच्चों को अपने तथ्य रखने व स्पष्टीकरण देने की अनुमति, खुली विचारधारा अपनाने से बच्चों में स्पष्टता आती है 

  • विरोधाभासी व्यवहारों पर नियंत्रण क्योंकि आपके बच्चे आपको देख कर ज्यादा सीखते है। 

  • अति नियंत्रण रखकर बच्चों को वैचारिक गुलाम ना बनाएं।

  • उदासी, अवसाद, तनाव, मानसिक संघर्ष, चिंता ग्रस्त पाए जाने पर मनोवैज्ञानिक परामर्श अवश्य कराएं।

  • व्यवहार में आए परिवर्तनों को मॉनिटर करें प्रत्येक माह में एक दिन अवश्य परिवारजन बिना टीवी मोबाइल के एक साथ गुजारे और आपस में अपने विचारों का आदान प्रदान करें।

  • अपेक्षाओं के अंधकार में ना फंसे उसमें अपने प्रयासों का उजाला अवश्य लाएं।

  • पथ के अनुरूप अपनी क्षमता के अनुरूप अपनी रफ्तार का चयन करें आप स्वयं अपने जीवन के चालक हैं स्वयं को दुर्घटना में हताहत नहीं करें।

  • अपने दोस्तों से उसके जॉब, रिलेशनशिप, टारगेट्स फैमिलीज आदि के बारे में बात करने की शुरुआत करें एक दोस्त ऐसा अवश्य रखें और एक दोस्त के लिए ऐसे में अवश्य उपलब्ध रहें कि आप उसको मानसिक संबल दे सकें।

  • सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप empathy रखें जब आप से कोई कुछ शेयर करें तो सुझाव से ज्यादा उसकी समस्या को सुने कई बार आप उसकी समस्या को मात्र पूरा सुन ले उसके संपूर्ण भाव उसके ज़हन से बाहर आ जाएं उससे भी कहीं बार व्यक्ति को हल्का महसूस होता है और समस्या का समाधान भी कई बार मिल जाता है।


क्या स्वयं के जीवन की समाप्ति एक कानूनन अपराध है?:-

इसके अंतर्गत अभी दो विरोधाभास है। प्रथमत: भारतीय दण्ड संहिता की धारा 309 के अंतर्गत आत्महत्या का प्रयास एक अपराधिक कृत्य है। यहां असफल होने पर दण्ड अथवा कारावास का प्रावधान है अर्थात आप बच गये तो अपराधी और मर गये तो ...... तो फिर क्या ? लेकिन हाल ही में आये मानसिक स्वास्थ्य देखरेख कानून 2017 की धारा 115, उच्च स्तरीय तनाव में किये गए आत्महत्या प्रयास को अपराध की श्रेणी में नहीं रख कर उन्हे मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करता है। 


मनोवैज्ञानिक सहयोग :-

आत्महत्या के विचारों का विश्लेषण करने का मौका कई बार मनोवैज्ञानिकों को मिलता है जब उनके पास कोई व्यक्ति अपनी मानसिक स्थिति जिसमें वह स्वयं को हानि पहुंचाने के विचार रखता है लेकर आता है तो मनोवैज्ञानिक उसे ना केवल मन और शरीर को शांत रखने के उपाय कराता है बल्कि समस्या को नये दृष्टिकोण से देखने और समस्या समाधान के नए पथ पर अग्रसित भी करता है।


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 Dr. Ravi Kirti  


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